tag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post671968892901902978..comments2024-03-23T15:42:05.574+05:30Comments on अमित शर्मा: आप किसे धर्म मानते है ?Amit Sharmahttp://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comBlogger27125tag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-16831384179075695362020-04-10T16:40:08.265+05:302020-04-10T16:40:08.265+05:30नोपकारात् परो धर्मो नापकारादधं परम्। ये किस श्लोक ...नोपकारात् परो धर्मो नापकारादधं परम्। ये किस श्लोक की पंक्ति है तथा किस पुस्तक से लिया गया है | कृपया जानकारी शेयर करने का कष्ट करें | धन्यवाद SUSHANT SHROTRIYAnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-88242891104661026352012-11-09T14:18:10.331+05:302012-11-09T14:18:10.331+05:30Aapane jo likha hai yahi satya hai. Bhgavanko beka...Aapane jo likha hai yahi satya hai. Bhgavanko bekari samazkar uske samane dhan fekanevale dharma aarth nahi samaz sakate.Vijayhttps://www.blogger.com/profile/09105384556687399838noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-41448247187290237002012-07-12T13:30:06.165+05:302012-07-12T13:30:06.165+05:30वर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना...वर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना किसी भी आम मनुष्य के लिए कठिन कार्य है । इसलिए मनुष्य को सदाचार एवं मानवीय मूल्यों के साथ जीना चाहिए एवं मानव कल्याण के बारे सोचना चाहिए । इस युग में यही बेहतर है ।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-29492655123566098612012-06-15T13:03:09.752+05:302012-06-15T13:03:09.752+05:30धर्म का उद्देश्य - मानव समाज में सत्य, न्याय एवं न...धर्म का उद्देश्य - मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता (सदाचरण) की स्थापना करना ।<br />व्यक्तिगत (निजी) धर्म- सत्य, न्याय एवं नैतिक दृष्टि से उत्तम कर्म करना, व्यक्तिगत धर्म है ।<br />सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । ईश्वर या स्थिर बुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है ।<br />धर्म संकट- जब सत्य और न्याय में विरोधाभास होता है, उस स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस परिस्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।<br />धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है ।<br />धर्म के विरुद्ध किया गया कर्म, अधर्म होता है ।<br />व्यक्ति के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -<br />राजधर्म, राष्ट्रधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म, इत्यादि ।<br />धर्म सनातन है भगवान शिव (त्रिदेव) से लेकर इस क्षण तक ।<br />धर्म व उपासना है तो ईश्वर (शिव) है, ईश्वर (शिव) है तो धर्म व उपासना है ।<br />राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों के हिसाब से किया जाता है ।<br />कृपया इस ज्ञान को सर्वत्र फैलावें । by- kpopsbjriAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-48615806082743511072012-06-15T13:00:17.154+05:302012-06-15T13:00:17.154+05:30धर्म का उद्देश्य - मानव समाज में सत्य, न्याय एवं न...धर्म का उद्देश्य - मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता (सदाचरण) की स्थापना करना ।<br />व्यक्तिगत (निजी) धर्म- सत्य, न्याय एवं नैतिक दृष्टि से उत्तम कर्म करना, व्यक्तिगत धर्म है ।<br />सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । ईश्वर या स्थिर बुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है ।<br />धर्म संकट- जब सत्य और न्याय में विरोधाभास होता है, उस स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस परिस्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।<br />धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है ।<br />धर्म के विरुद्ध किया गया कर्म, अधर्म होता है ।<br />व्यक्ति के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -<br />राजधर्म, राष्ट्रधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म, इत्यादि ।<br />धर्म सनातन है भगवान शिव (त्रिदेव) से लेकर इस क्षण तक ।<br />धर्म व उपासना है तो ईश्वर (शिव) है, ईश्वर (शिव) है तो धर्म व उपासना है ।<br />राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन <br />लोकतांत्रिक मूल्यों के हिसाब से किया जाता है ।<br />कृपया इस ज्ञान को सर्वत्र फैलावें । by- kpopsbjriAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-3009425054858814392011-10-03T00:26:58.266+05:302011-10-03T00:26:58.266+05:30जो इंसान ख़ामोश चीज़ों तक की ज बान जानता हो, वह इतन...जो इंसान ख़ामोश चीज़ों तक की ज बान जानता हो, वह इतना बहरा कैसे हो जाता है कि धर्म की उन हज़ारों ठीक बातों को वह कभी सुनता ही नहीं, जिनका चर्चा दुनिया के हरेक धर्म-मत के ग्रंथ में मिलता है लेकिन अपना सारा ज़ोर उन बातों पर लगा देता है जिन पर सारी दुनिया तो क्या ख़ुद उस धर्म-मत के मानने वाले भी एक मत नहीं हैं।<br />शुभकामनायें !<br /><br /><a href="http://vedquran.blogspot.com/2011/09/blog-post_25.html" rel="nofollow"><b>जानिए कि परम धर्म क्या है ?</b></a>DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-24344198837368310182011-07-31T20:14:59.072+05:302011-07-31T20:14:59.072+05:30धर्मं विश्वास है, प्रेम है, भक्ति है, कर्त्तव्य है...धर्मं विश्वास है, प्रेम है, भक्ति है, कर्त्तव्य है | धर्मं है स्वीकार, शांति, धन्यवाद और सच्चाई | इंसानियत भी धर्म है, प्रार्थना भी, सहजता भी धर्मं है, स्वयं का ज्ञान भी | वो हर चीज़ जो आत्मा की तड़प और मांग है - वही धर्मं हैAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-49982082386127052072011-07-22T23:37:02.493+05:302011-07-22T23:37:02.493+05:30इंसान का इंसान से हो भाईचारा यही है धर्म हमाराइंसान का इंसान से हो भाईचारा यही है धर्म हमाराS.M.Masoomhttps://www.blogger.com/profile/00229817373609457341noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-25812501381497084832011-07-18T20:08:42.421+05:302011-07-18T20:08:42.421+05:30धर्म का बहुत सुन्दर विश्लेषण...लेकिन आज धर्म का जो...धर्म का बहुत सुन्दर विश्लेषण...लेकिन आज धर्म का जो रूप दिखायी दे रहा है वह समाज में केवल बिखराव और अन्धविश्वास फैलाने के अलावा कुछ नहीं कर रहा...Kailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-76563507675250126242011-07-17T19:27:29.559+05:302011-07-17T19:27:29.559+05:30प्रतुल जी
बहुत सही कहा आपने ।
किन्तु वस्तुत: धर्...प्रतुल जी<br />बहुत सही कहा आपने ।<br />किन्तु वस्तुत: धर्म की परिभाषा जैसा कि अमित जी ने पहले ही कहा है , जो धारण करने योग्य हो ।<br />इसकी व्युत्पत्ति धार्यते इति धर्म है ।<br />इसका सीधा सा आशय जो धारण करने किंवा अपनाने लायक हो वह धर्म है । यहाँ पर एक बात गौर करने की है यदि किसी हिंसक के साथ हम अच्छा व्यवहार कर रहे हैं तो वह भी अधर्म है क्यूँकि यह बात अपनाने लायक नहीं है ।<br />श्री गीता जी कहती हैं कि हिंसक की हिंसा भी अहिंसा है ।<br />इस प्रकार समसामयिक परिवेश में जो वस्तु समाज के एक उदार तथा बडे भाग द्वारा स्वीकृत हो वह धर्म है ।<br /><br />जैसे यहाँ जितने लोग हैं सभी अमित जी के लेख की अपनी तरह से व्याख्या करते हुए भी उनके विचारों से सहमत हैं , अर्थात् उनकी बात धर्मगत है ।<br /><br />स्वस्थ चर्चा के लिये धन्यवादSANSKRITJAGAThttps://www.blogger.com/profile/12337323262720898734noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-91250113163893229242011-07-17T18:54:57.146+05:302011-07-17T18:54:57.146+05:30भारतीय सन्दर्भ में धर्म के व्यापक अर्थ का मत/पंथ/र...भारतीय सन्दर्भ में धर्म के व्यापक अर्थ का मत/पंथ/रिलीजन/मज़हब के सीमित अर्थ से अंतर स्पष्ट है - आभार!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-11692350572480190932011-07-16T22:03:23.712+05:302011-07-16T22:03:23.712+05:30समस्त प्रकृति के प्रति मानव को अपना कर्तव्य निष्पक...समस्त प्रकृति के प्रति मानव को अपना कर्तव्य निष्पक्ष निरपेक्ष भाव से निभाते रहना ही धर्म है।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/04417160102685951067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-76182382914764843202011-07-16T00:50:24.489+05:302011-07-16T00:50:24.489+05:30बहुत सुंदर विवेचना,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.c...बहुत सुंदर विवेचना,<br /><a href="http://vivj2000.blogspot.com/" rel="nofollow"><b> विवेक जैन </b><i>vivj2000.blogspot.com</i></a>Vivek Jainhttps://www.blogger.com/profile/06451362299284545765noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-51650964075817865642011-07-15T14:24:22.682+05:302011-07-15T14:24:22.682+05:30गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर सभी मित्रों को मेरी ह...गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर सभी मित्रों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-88788662223459546942011-07-15T11:09:29.399+05:302011-07-15T11:09:29.399+05:30.
यदि हर व्यक्ति अपने लिए निर्दिष्ट कर्तव्य को पह....<br /><br />यदि हर व्यक्ति अपने लिए निर्दिष्ट कर्तव्य को पहचाने और उसे पूरा करने के लिए तत्पर रहे तो वही धर्म है ! hamaara कर्तव्य परिवार के प्रति है , समाज के प्रति है और देश के प्रति है! <br /><br />कर्तव्यपरायणता ही धर्म है. <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-43398430960477520582011-07-14T22:24:04.455+05:302011-07-14T22:24:04.455+05:30गहन व्याख्या.धर्म का अर्थ धारण करना .गहन व्याख्या.धर्म का अर्थ धारण करना .अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)https://www.blogger.com/profile/11022098234559888734noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-43190924028291745302011-07-14T11:00:19.002+05:302011-07-14T11:00:19.002+05:30साधुवाद!! अमित जी, धर्म को उसके सार्थक शुद्ध रूप म...साधुवाद!! अमित जी, धर्म को उसके सार्थक शुद्ध रूप में प्रस्तुत करने के लिए।<br />धर्म आत्मा का ही धर्म होता है। और आत्मा शुद्ध रूप में सभी का भला ही चाहती है। यही आत्मा का गुण-धर्म है। यदि आवरण हट जाय तो।<br /><br />प्रतुल जी,<br /><br />संयम से काम लें, देखिए धर्म सर्वे भवन्तु सुखिनः रूप है। इसीलिए सौहार्दशाली है। यही शाश्वत धर्म का महान गुण है। हिंसक विचारधाराएं जो आतंकवाद और क्रूरता में रत है। यही चाहती है कि हम सौहार्दवान भी हिंसक बन जायं। धर्म का वैधव्य भोग रही यह विचारधाराएं चाहती है अन्य जिनका धर्म अभी जिंदा है, विधवा हो जाय। वे सत्य-धर्मीयों को भी आक्रोशित क्रूर देखने की इच्छुक है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-59856085538049217832011-07-14T09:47:52.744+05:302011-07-14T09:47:52.744+05:30मानव जीवन के गिने चुने दिनों में, मरते दम किसी के ...मानव जीवन के गिने चुने दिनों में, मरते दम किसी के काम आ जाने से बड़ा धर्म कोई नहीं ! <br />शुभकामनायें आपको !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-19206777071257104872011-07-14T09:15:44.889+05:302011-07-14T09:15:44.889+05:30धर्म को अपने अनुसार परिभाषित कर उसे नकारने का कार्...धर्म को अपने अनुसार परिभाषित कर उसे नकारने का कार्य नास्तिक बहुत दिनों से करते आये हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-67580023518217344562011-07-14T08:29:36.290+05:302011-07-14T08:29:36.290+05:30जी हाँ चाणक्य के अनुसार देश काल के अनुसार अलग अलग...जी हाँ चाणक्य के अनुसार देश काल के अनुसार अलग अलग धर्म होते हैं <br />आतंकवादिओं का संहार राष्ट्र धर्म ही है, समाज में हो रहे गलत बातों का विरोध भी हमारा धर्म है !मदन शर्माhttps://www.blogger.com/profile/07083187476096407948noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-65183389477080704322011-07-13T23:38:35.130+05:302011-07-13T23:38:35.130+05:30जब देश में आतंकवादी गतिविधियाँ बढ़ जाएँ तब मन को ...जब देश में आतंकवादी गतिविधियाँ बढ़ जाएँ तब मन को किस धर्म से मढूं? .<br />'धृति' मुझे रास नहीं आता.....क्षमा करने का अब मन नहीं करता..... दुष्टों के दमन की इच्छा बलवती रहती है...... <br />सोचता हूँ कहीं से, (शाद पुलिस थाने से) शस्त्र (रिवोल्वर) की चोरी करके आस-पास के गुंडों को भूनना शुरू कर दूँ. समाज के काफी लोग (पुलिस समेत) असामाजिक तत्वों को भलीभाँति पहचानते हैं...<br />देश के गद्दारों को पहचानकर मारने की योजना मन में बनाता रहता हूँ. ............ ये कैसा धर्म कहा जायेगा? ... क्या राष्ट्र धर्म तो नहीं??<br />मैं ऐसे में धर्म के समस्त लक्षणों को अपने से दूर पाता हूँ ... मन हिंसक विचारों से भरा जा रहा है. शुचिता ख़त्म... जब योजना बनेगी तो असत्य भाषण जैसे अवगुणों की छूट ले ही लूँगा.<br />मुझे समझ नहीं पड़ता कि देशधर्म किस रीति से निभाऊँ?प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-17446335772809491092011-07-13T23:26:03.918+05:302011-07-13T23:26:03.918+05:30मनुष्य को ईश्वर ने इतना बुद्धिमान तो बनाया है कि ब...मनुष्य को ईश्वर ने इतना बुद्धिमान तो बनाया है कि बिना तर्क के किसी बात को नहीं मानना चाहिए किन्तु फिर भी बहुत से व्यक्ति आसानी से गलत बातों को स्वीकार लेते हैं और कुछ मनुष्यों को आप कितना ही तर्क देलें वो फिर भी अपनी बात मनवाने के लिए कुतर्कों के सहारे हमेशा व्याकुल रहते है। सच में मानव कि बुद्धि बड़ी जटिल है और वो वोही मानना चाहती है जैसे उसको संस्कार मिले हैं चाहे सही या गलत और कुछ बुद्धिमान लोग ही उन गलत संस्कारों को ज्ञान से नाप-तौलते हैं अन्यथा बाकी तो सब भेड़-बकरियों कि तरह ही व्यवहार करते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति को उनके छल भरे कुतर्कों को समझना चाहिए। धर्मं मनुष्य को मनुष्यत्व के मूल भूत सिद्धांत जैसे की ब्रहमचर्य, ईश्वर ध्यान, समाधी सज्जनों से प्यार, न्याय, दुष्टों को दंड, सभी जीवधारियों पर दया भाव आदि अनेक जीवन के सिद्धांतों के साथ-२, विज्ञान, गणित और जगत रहस्यों को समझाता या सिखाता है।मैं एक बात उनलोगों से पूछना चाहता हूँ की उनको धर्म का अर्थ भी पता है या नही उनकी अल्प और संकीर्ण बुद्धि धर्म, मजहब और रिलिजन को पर्यावाची शब्द समझती है जबकि धर्म और बाकि सब में धरती आकाश का अंतर्भेद है |मदन शर्माhttps://www.blogger.com/profile/07083187476096407948noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-39637326899374605592011-07-13T23:17:49.257+05:302011-07-13T23:17:49.257+05:30अपने कार्यों में व्यस्त रहने के कारण मै बहुत दिनों...अपने कार्यों में व्यस्त रहने के कारण मै बहुत दिनों के बाद आपके पोस्ट पर आया बहुत अच्छा लगा आपका पोस्ट !<br />धर्म तो उन मान्यताओं को आचरण में धारने का नाम है जो महर्षि मनु द्वारा बताये गए धर्म के दस लक्षणों के नाम से जाने जाते हैं - <br />धृति क्षमा दमोस्तेय शौचं इन्द्रिय निग्रह धीर्विद्या सत्यम अक्रोधः दशकं धर्मः लक्षणंमदन शर्माhttps://www.blogger.com/profile/07083187476096407948noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-65414481032773154572011-07-13T21:55:45.204+05:302011-07-13T21:55:45.204+05:30वाह,बहुत बढ़िया analysis धर्म की की है आपने.वाह,बहुत बढ़िया analysis धर्म की की है आपने.Kunwar Kusumeshhttps://www.blogger.com/profile/15923076883936293963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-921423282499621986.post-56283716248196843802011-07-13T18:42:58.980+05:302011-07-13T18:42:58.980+05:30सांड लाल रंग को देखकर भड़कता है, आशंका है यहाँ भी ...सांड लाल रंग को देखकर भड़कता है, आशंका है यहाँ भी कुछ लोग भड़क सकते हैं:)<br />लेकिन ऊपर जो जो लाल रंग में लिखा है, धर्म की वो सभी परिभाषायें अपने को अच्छी लगीं क्योंकि उनमें सिर्फ़ अपने बारे में नहीं समस्त विश्व के कल्याण की बात की गई है।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.com