रविवार, 6 अगस्त 2017

कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् - 2


"कृष्णाख्यं परं ब्रह्म"  यह कृष्ण परम ब्रह्म हैं जो सब का  अधिष्ठान हैं वह परमात्मा परम ज्योति, चेष्टा रहित, निर्गुण और विभु हैं। इन्ही श्रीकृष्ण की ब्रह्म रूपात्मिका शक्ति से गुणात्मक पुरुष नामक शक्ति का आविर्भाव होता हैं जिन्हे "प्रधानेश" कहते हैं। इस प्रधानेश नामक शक्ति से महाविष्णु व्यक्त होते हैं जो हिरण्यगर्भ नाम से विख्यात हैं।
यही हिरण्यगर्भ महाविष्णु महाविराट रूप से व्यक्त हैं जिनसे अनंत विराट और अनंत विराटों की अभिव्यक्ति शेषशायी श्रीनारायण और शेषशायी नारायण का शक्ति विस्तार श्रीविष्णु के रूप में प्रकट होता हैं।
इन सभी शक्ति रूपों के आश्रय  जो स्वयं सर्वैश्वर्य युतः साक्षात सर्वमाधुर्यवान सर्व गुण-अगुण विवर्जित परमब्रह्म श्रीकृष्ण ही निज संकल्पपूर्वक भक्तजनाधीन अपने अवतार विग्रहों को प्रकट करतें हैं।

अवतार तीन प्रकार के हैं -
१. लीलावतार
२. पुरुषावतार
३. गुणावतार

प्रथम लीलावतार के चार भेद हैं -
अ. आवेशावतार
ब. प्रभावतार
स. विभवावतार
द. स्वरूपवतार

अ. आवेशावतार की दो अभिव्यक्ति हैं
१. स्वांशावेशावतार (कपिल, परशुराम आदि )
२. शक्त्यावेशावतार  ( सनकादिक, नारद, पृथु,  आदि)
ब. प्रभावतार में - हंस, ऋषभ, धन्वन्तरि, मोहिनी, व्यास आदि हैं।
स. विभवावतार में - मत्स्य, कूर्म, नर-नारायण, वराह,  हयग्रीव, पृष्णीगर्भ, बलभद्र आदि हैं।
द. स्वरूपावतार में सर्वाधिक ऊर्जा का संचार होता हैं।   नृसिंह, राम, कृष्ण स्वरूपवतार हैं।

श्रीनृसिंह स्वरूपावतार होते हुये भी पूर्णावतार नहीं हैं।

फिर पूर्णावतार कौन हैं ?
पूर्णावतार तो एक श्रीकृष्ण ही हैं।

ऐसे कैसे ? श्रीराम भी तो स्वरूपावतार हैं उनकी गणना कहाँ गई ??
अरे भैया !  श्रीराम-कृष्ण में भेद मान रहे हो इसलिए ऐसा पूछ रहे हो :)
श्रीराम-कृष्ण तत्वतः स्वरूपतः एक ही हैं, दोनों में कोई भेद ही नहीं हैं।

श्रीमद्भागवत में श्रीराम के लिए आया हैं -
" तस्यापि भगवानेष साक्षाद ब्रह्ममयो हरिः।
   अंशांशेन  चतुर्धागात  पुत्रत्वं   सुरै : ।।
साक्षात श्रीभगवान ही अपने अंशों -भरत-लक्ष्मण-शत्रुघ्न  सहित श्रीराम के रूप में प्रकट हुए।
यहाँ  "भगवानेष साक्षाद" की समानता "भगवान् स्वयं" से हैं तो जब कहा जाता हैं कि - "कृष्णस्तु भगवान् स्वयं" तो यह घोषणा श्रीराम-कृष्ण दोनों के लिए हैं।
कृष्णोपनिषद कहती हैं -
यो रामः कृष्णतामेत्य सार्वात्म्यं प्राप्य लीलया।
अतोशयद्देवमौनिपटलं   तं       नतोSस्म्यहम ।।

इस लिए श्रीराम-कृष्ण के नाम से  परं ब्रह्म स्वयं की प्रकटते हैं तथा अन्यावतार उनके अंश कला आदि हैं जिनमें कल्पभेदादि से शक्तिसंचार की न्यून्याधिकता होती हैं।

                                         "एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्"

#कृष्णं_सर्वेश्वरं_देवमस्माकं_कुलदैवतम्‌
क्रमश:








2 टिप्‍पणियां:

  1. किसी भी अवतार में परमात्मा पूर्ण ही होते है। क्योंकि किसी भी अवतार में जितनी जरूरत होती है उतना ही वे अपनी शक्तियों का उपयोग करते है। -
    ॐ पूर्ण मदः पूर्ण मिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते।।
    पूर्णष्य पूर्ण मादाय पुर्नमेवावशिष्यते।

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