सोमवार, 11 अप्रैल 2011

भारतीय काल गणना ----- भारत में सूर्य,चन्द्र और पृथ्वी तीनों के भ्रमण का ध्यान रखकर पंचांग बनाया गया है।

पिछली पोस्ट से लगातार .........

तब
राजुल बोला की यह तो हुयी रोमन और अरबी कैलेंडर की बात। अब हिंदी केलेंडर की बात बता, जिसका
तू इतना गुणगान करता है
मैंने कहा की देख गुणगान करने की बात नहीं है, संसार में जितने भी बड़े हैं सभी आदर के पात्र होते है लेकिन अपने माता-पिता के सम्मान को परे रखकर दूसरें बड़ों का आदर करना कैसे ठीक कहला सकता है।

चल छोड़ इस बात को मुद्दे की बात करते है की भारतीय कैलेण्डर कैसे ज्यादा सटीक है।
जैसा की मैंने बताया कि चंद्र-वर्ष केवल चन्द्रमा कि गति से सम्बन्ध रखता है इसलिए इसका मौसम से कोई रिश्ता नहीं रहता। वैसे ही सौर - गणना का सम्बन्ध चन्द्रमा से नहीं रहता। तू ही बता कि क्या रोमन कैलेण्डर से यह बताया जा सकता है कि अमावस्या कब आएगी और पूर्णिमा कब होगी ?

इन दोनों गणनाओं कि यह कमीं भारतीय गणना में दूर होती है। भारत में सूर्य,चन्द्र और पृथ्वी तीनों के भ्रमण का ध्यान रखकर पंचांग बनाया गया है।

राजुल बीच में उछला कि यार चाँद और धरती कि गती तो समझ में आती है पर सूरज बाबा तो एक ही जगह रहता है उसकी गती का क्या मतलब ????
मैंने कहा कि मेरे भोले भंडारी जिस तरह चन्द्रमा पृथ्वी कि परिक्रमा करता है, पृथ्वी सूर्य की उसी तरह सूर्य भी अपने सौरमंडल को साथ लेकर ब्राह्मांड में आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। इसको परिक्रमा करनें में२२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं। इसके परिक्रमा करने की गति २५१ किलोमीटर प्रति सेकेंड है। इसलिए इन तीनो कि गति के आधार पर बना भारतीय पंचांग ज्यादा वैज्ञानिक है। और इसी कारण थोडा कठिन भी है।

ग्रहों, नक्षत्रों कि गती, भ्रमण काल, भ्रमण मार्ग की सुक्षम्तम गणना भारत के वैज्ञानिकों ने की थी।
हमारे यहाँ "समय" कि सूक्ष्मतम इकाई "त्रुटि" मानी गयी है.
त्रुटी माने गलती !!!!!!!!! अरे नहीं भई तू चुपचाप सुन ........ मेरा ध्यान मत डिगा, मैं झुन्झुलाया।

इस त्रुटि का मान एक सेकेण्ड का ३३७५० वाँ हिस्सा होता है। और "तल्लाक्षण" को समय कि सबसे बड़ी इकाई बताया गया है। तल्लाक्षण का मान
10^53 होता है यानी १ के आगे ५३ जीरो लगाने पर जो संख्या आये।
वोह फिर से अपनी पर गया और बोला कि देख तू मुझे पागल बनाने कि कोशिश कर रहा है ना, मैं मानता हूँ कि पहले इंडियन बहुत बड़े साइंटिस्ट थे पर !!!!!!! देख थोडा हिसाब कि फेंक :)
अब मैं बहुत पछताया कि किस कुघड़ी में मैंने इसे यह सब बताने कि सोची, "नादान कि दोस्ती जी का जंजाल" .............. चल ठीक है मैंने पहले ही कहा था कि समय कि इकाइयों को समझने के चक्कर में तू उठकर भाग जाएगा। अपन साल,दिन,महीने पर ही आगे चलते है।

साल में बारह महीने प्रारंभ से ही भारतीय गणना में मौजूद है, हर महीने में पंद्रह पंद्रह दिन के दो पक्ष होते है - शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। जब अमावस्या के बाद चन्द्रमा बढ़ता है और अपनी उजली रौशनी फैलाता है तो वह पक्ष शुक्ल कहलाता है और जब पूर्णिमा के बाद जब चाँद की उज्वलता धीरे धीरे कम होती जाती है तो वह समय कृष्ण पक्ष कहलाता है।

अच्छा अब हिंदी के बारह महीनो के नाम सुन -- . चैत्र, . वैशाख, . ज्येष्ठ, . आषाढ़, . श्रावण, . भाद्रपद, . आश्विन, . कार्तिक, . मार्गशीर्ष, १०. पौष, ११. माघ, १२. फाल्गुन

तभी राजुल बीच में ही बोला कि यह कौन कौन से राजा है। मेरे दिमाग का भड़ीन्गा बैठ गया, कि यह क्या सवाल हुआ नाम बता रहा हूँ महीनो के और यह मसखरा राजा महाराजाओं कि घाल-घुसेड कर रहा है। पर बात तुरंत ही समझ में गई कि जनाब रोमन कलेंडर के जुलाई-अगस्त के नामकरण कि कहानी से यहाँ का तुक्का मिला रहेहै :)
मैंने कहा कि भईये यह राजाओं की बारात नहीं है कि कोई चैत्रसिंह नाम का राजा हुआ तो उसने एक महिना अपने नाम पर चैत्र कर लिया, या वैशाखनंदन जी हुए तो उनके नाम पर वैशाख पड़ गया।
तो फिर जल्दी बता यह नाम कैसे पड़े।
अब सुन चुपचाप ......... जिस महीने कि पूर्णिमा को चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र में होता है, उस महीने का नाम चैत्र होता है, वैशाख कि पूर्णिमा को चन्द्रमा विशाखा नक्षत्र में, ज्येष्ठ कि पूर्णिमा को ज्येष्ठा में, आषाढ़ कि पूर्णिमा को पूर्वाषाढा या उत्तराषाढा, श्रावण कि पूर्णिमा को श्रवण में, भाद्रपद कि पूर्णिमा को पूर्वाभाद्र या उत्तराभाद्र, आश्विन महीने में अश्विन नक्षत्र में, कार्तिक कि पूर्णिमा कृतिका, मार्गशीर्ष कि पूर्णिमा को मृगशिरा, पौष कि पूर्णिमा को पुष्य, माघ की पूर्णिमा को मघा, और फाल्गुन कि पूर्णिमा को चन्द्रमा पूर्वाफाल्गुनी या उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में होता है., इसलिए इन नक्षत्रों के आधार पर इनका नाम स्थिर किया गया है।

अब बताओ कि यह नामकरण पूर्णतया वैज्ञानिक है या नहीं। पर अभी उसका कीड़ा मरा थोड़े ही था बोला कि चल यह तो समझ में गया पर तीन साल में पूरा का पूरा महीना किस वैज्ञानिक विधि से बढ़ जाता है।

यह भी सुनो जैसा कि तुम्हे पता है कि यह एक खगोलशास्त्रीय तथ्य है कि सूर्य 30.44 दिन में एक राशि को पार करता है और यही सूर्य का सौर महीना है। ऐसे बारह महीनों का समय जो 365.25 दिन का है, एक सौर वर्ष कहलाता है। चंद्रमा का महीना 29.53 दिनों का होता है जिससे चंद्र वर्ष में 354.36 दिन ही होते हैं। यह अंतर 32.5 महीने के बाद यह एक चंद्र माह के बराबर हो जाता है। इस समय को समायोजित करने के लिए हर तीसरे वर्ष एक अधिक मास होता है। एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या के बीच कम से कम एक बार सूर्य की संक्रांति होती है। यह प्राकृतिक नियम है। जब दो अमावस्या के बीच कोई संक्रांति नहीं होती तो वह महीना बढ़ा हुआ या अधिक मास होता है। संक्रांति वाला माह शुद्ध माह, संक्रांति रहित माह अधिक माह और दो अमावस्या के बीच दो संक्रांति हो जायें तो क्षय माह होता है। क्षय मास कभी कभी होता है।
और उस बढे हुए महीने कि पूर्णिमा को चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है वही उस महीने का नाम होता है।

अधिक मास लगातार पूर्णिमा से पूर्णिमा तक नहीं होता बल्कि अमावस्या से अमावस्या तक होता है क्योंकि इसका आधार सूर्य संक्रांति है इसलिए पहले पूर्णिमा से अमावस्या तक शुद्ध महिना रहता है फिर अमावस्या से अधिक मास चालू होकर अगली अमावस्या तक रहता है फिर उस अमावस्या से पूर्णिमा तक शुद्ध मास का बाकी बचा पक्ष होता है।

तभी मेरे मोबाईल कि घंटी बजने लगी, मैंने कहा कि देख प्रतुल जी का फोन रहा है, अब मुझे आधा पौन घंटा लग जाएगा तब तक तू इस चैप्टर को ढंग से समझ ले फिर आगे बढ़ेंगे ......

जारी ..............

12 टिप्‍पणियां:

  1. भारतीय काल गणना एकांगी नहीं.
    पृथ्वी भ्रमण के कारण दिन और रात बने. काल का सूक्ष्मतम पैमाना 'त्रुटि' और विशालतम इकाई 'तल्लाक्षण' भारतीय गणित की उन्नत स्थिति को दर्शाता है.
    चन्द्र भ्रमण के कारण पूर्णिमा और अमावस्या से पक्ष और मास बने. इस बीच पूर्ण चन्द्र की स्थिति जिस नक्षत्र में पड़ती है उसी आधार पर मास का नामकरण.
    सूर्य भ्रमण के कारण भारत का षट ऋतु-चक्र बना. सूर्य [पृथ्वी और चन्द्र के सापेक्ष] अपनी यथास्थिति में जब लौट आता है उसी का आधार लेकर बढ़ मास का विधान हुआ.
    यह काल गणना में संतुलन लाने हेतु किया गया. तीनों की भागीदारी को न नकारना ही भारतीय काल गणना की विशेषता है.

    जवाब देंहटाएं
  2. रोचक लगा :
    — निहारिका वर्ष जो कि २५ करोड़ वर्ष है. इस आंकड़े को लेकर कल्पना उड़ान भरने लगी. सौर्यमंडल से बाहर जाने की कोशिश करने लगी.
    — त्रुटि का मान इतना सूक्ष्मतम है सोचकर ही अचंभित हो गया. पर आपकी टाइपिंग त्रुटियों का मान बहुत विशालतम कहा जाएगा.
    अंतिम से पहले अनुच्छेद में ......... पूर्णिमा को चन्द्रमा जी नक्षत्र में होता है वही उस महीने का नाम होताहै।
    में ......... चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है ........ करें.
    'की' और 'कि' में भेद बनाए रखें.
    — तल्लाक्षण की इकाई 10^53 देखकर मन पिद्दा होकर कौने में बैठ गया.

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रतुल जी की बात से सहमत कि यह सीरिज एक दस्तावेज के रूप में संजोने लायक है।
    सुझाव देने में अपन भी आम हिन्दुस्तानियों की तरह माहिर हैं, पिछली पोस्ट का लिंक भी साथ में दे दिया करें।
    राजुल तक हमारा धन्यवाद पहुँचाया जाये, समझदानी के मामले में ’मो सम’ ही लगा। कोई और होता विद्वान टाईप का तो फ़िर उसे इस भाषा में थोड़े ही समझाना पड़ता कि हमें भी समझ आ जाए।
    अपनी फ़रमाईश मानने(भारतीय मास विवरण) के लिये एक धन्यवाद खुद भी रख लेना, खोटे सिक्के की तरह कभी काम आ जायेगा।

    जवाब देंहटाएं
  4. यह दोनों का निष्कर्ष निकालकर ही कैलेन्डर बनाने से सब त्रुटिहीन है।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुझाव मानने का एक और बोनस धन्यवाद:)

    जवाब देंहटाएं
  6. समय पर सवार, तात्विक और तथ्यपूर्ण जानकारी।
    अमित जी आपका आभार इस प्रस्तुति के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  7. एक उच्च कोटि का आलेख। बहुत सी नई जानकारी मिली। आभार इस आलेख के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  8. ye rochak aur sachchi jaankari prastut karne ke liye aabhaar bhai sahab...

    kunwar ji,

    जवाब देंहटाएं
  9. ऐ ज्ञान-छाँटू मानव ! इस पुस्तक का नाम भी बता देते तो हम खरीद कर पढ़ते और अपनी छोटी सी पुस्तकालय का अंग बना लेते. :-)
    वाकई बहुत ही अच्छा आलेख है.
    पूर्व और पर दोनों पढ़ रहा हूँ.

    जवाब देंहटाएं
  10. जानकारी का शुक्रिया। जटिल है, ठीक से समझने के लिये कई बार पढना पडेगा।

    जवाब देंहटाएं
  11. आप शायद मेरे ब्लॉग पर आये,उसी लिंक से इस पोस्ट पर आना हुआ.

    बहुत ही सुन्दर महत्वपूर्ण जानकारी मिली यहाँ आकर.
    जानकारीपूर्ण रोचक प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आप आये और बिना कुछ कहे ही चले आये.
    जहाँ आपके आने की खुशी है,कुछ न कहने की शिकायत है जी.

    जवाब देंहटाएं

जब आपके विचार जानने के लिए टिपण्णी बॉक्स रखा है, तो मैं कौन होता हूँ आपको रोकने और आपके लिखे को मिटाने वाला !!!!! ................ खूब जी भर कर पोस्टों से सहमती,असहमति टिपियायिये :)