शनिवार, 18 दिसंबर 2010

जयपुर-दर्शन ------- 1






आगामी पौष कृष्णा पडवा, जो की 22 दिसंबर को पड़ेगी. गुलाबी नगर जयपुर का स्थापना दिवस है. यानी हैप्पी बड्डे जी . तो इसी सन्दर्भ में जयपुर स्थापना महोत्सव मनाते हुए "जयपुर-दर्शन" श्रंखला के तहत जयपुर से जुडी पोस्ट लिखने का मन बनाया है. आशा है आपको भी जयपुर के बारें में पढ़कर अच्छा लगेगा.


जयपुर एक नयनाभिराम नगर मात्र नहीं, एक सांस्कृतिक बोध और साकार सपना है, जिसमें जीवन के रंग-ढंग, सुरुची और आनंदाभूति के आनंद, योद्धा के शौर्य, विद्याव्यसनी की कल्पना और हस्तशिल्पों के हुनर का ताना-बाना इस तरह गुंथा हुआ है की एक अपने ही प्रकार की मौलिकता की सृष्ठी हो गयी है .
जयपुर का अपना व्यक्तित्व है जो न केवल इस शहर में विद्या, विज्ञान और कला-कौशल के त्रिवेणी संगम से उभरा है, बल्कि उन मूल्यों का भी प्रतीक है जो जीवन को सुखद और समरस बनाने में सहायक होतें है. यही कारण है की जयपुर को आज के वास्तुकार और स्थापत्य-मर्मज्ञ भी संसार के सर्वसुन्दर नगरों में गिनते है.
जयपुर अपने अद्वितीय नगर नियोजन, सम़द्व ऐतिहासिक एवं सांस्‍क़तिक धरोहर के कारण देशी विदेशी पर्यटको के आकर्षण का केन्‍द्र रहा है . जयपुर के संस्‍थापक सवाई जयसिंह ने तत्‍कालीन सीमित साधनों के बावजूद विश्‍व के अनेक विख्‍यात नगरों के मानचित्रों का अध्‍ययन करने के बाद ज्‍योतिष एवं वास्‍तु सम्‍मत बातों को महत्‍व देते हुए इस नगर की स्‍थापना की ऐतिहासिक भव्‍य राजमहलों, आकर्षक बाजारों, रमणीय एवं सुर्दशन मंदिरों से अलंकृत यह शहर आज भी दुनियाभर के पर्यटकों को आकृष्ठ करता है. सवाई जयसिंह ने लगभग 2 लाख की आबादी को बसाने के लिये इस शहर की परिकल्‍पना की थी . शांत, सुव्‍यवस्थित एवं गुणीजनो के इस शहर की आबादी निरंतर बढती गयी और वर्ष 2001 की गणना के अनुसार यहां की आबादी 52 लाख 51 हजार 71 हो चुकी है .

अब से 283 साल पहले कछवाह वंश के शासक महाराजा सवाई जयसिंह द्वितिय ने पौष कृष्णा एकम , विक्रम संवत 1784 (18 नवम्बर 1727 ईस्वी ) को अरावली पर्वत मालाओ की तलहटी में की, और आमेर के बजाय इसे नगर की अपनी राजधानी बनाया.
सवाई जयसिंह ने विश्‍व के सुंदरतम शहर की परिकल्‍पना की और इसे साकार करने का दायित्‍व अपने मुख्‍य वास्‍तुकार श्री विघाधर भट़टाचार्य को सौपा. स्‍थापत्‍य कला के उपलब्‍ध समस्‍त नमूनों का विस्‍तार से अध्‍ययन कर श्री विघाधर ने एक अनूठे नगर का नियोजन किया इस चतुर्भजाकार शहर को नौ चौकडियों में विभाजित किया . नगर के चारो ओर सात प्रवेश द्वार बनाये गये इनमें चांदपोल, अजमेरी गेट, सांगानेरी गेट, घाटगेट, सूरजपोल गेट, चारदरवाजा, जोरावरसिंह गेट आज भी शहर के जन जीवन के साक्षी बने हुए है .उसी अनुपात में तोपखाना हुजूरी , तोपखाना देश,मोदीखाना, विश्वेश्वरजी, रामचन्द्रजी, गंगापोल और सरहद नामक चौकड़ियों में में जयनगर को विभाजित किया गया. विभ्न्नि व्‍यवसायो को अलग अलग चौकडियों में व्‍य‍वस्थ्ति रूप से बसाया गया . आम जनता और व्यवसायिओं की सुविधा के लिए चांदपोल बाजार, किशनपोल बाजार, गणगौरी बाज़ार, त्रिपोलिया बाज़ार, जौहरी बाज़ार, रामगंज बाज़ार और सिरह ड्योढ़ी बाज़ार का निर्माण हुआ. सवाई जयसिंह ने जयपुर को कलाओं के क्षेत्रो में अग्रणी बनाने के लिये अनेक कलाकारों और विशेषज्ञो को विभिन्‍न स्‍थानो से लाकर उन्‍हें जयपुर में बसाया और राज्‍याश्रय प्रदान किया . इससे यह शहर शिल्‍पकला, चित्राकारी, मीनाकारी, जवाहरात, पीतल की नक्‍काशी, हस्‍त निर्मित कागज,रत्‍नाभूषण, ब्‍ल्‍यू पौट्री तथा छीपाकला आदि सभी कलाओं में उत्‍क़ृष्‍टता अर्जित कर सका .

जब नगर-नियोजन प्रायः अनजाना विषय रहा होगा, जयपुर के राजमार्ग ज्यामितिक सूत्रों और गणित की कसौटी पर खरे उतार कर बनाए गए थे. इन सड़कों का संगम एक नाप और आकार के चौराहों - जिन्हें चौपड़ कहा जाता है - पर होते है. जिनके बीच में फव्वारे जल की फुहारें छोड़तें है. दोनों और सूत बांधकर एक सी दुकाने और उनके ऊपर आवासीय एवं धार्मिक भवनों-हवेलियों और मंदिरों की पंक्तियाँ चली गयी है.

चौपड़ के नक्शे के अनुसार ही सड़कें बनवाई गई . पूर्व से पश्चिम की ओर जाने वाली मुख्य सड़क 111 फुट चौड़ी रखी गई . यह सड़क, एक दूसरी उतनी ही चौड़ी सड़क को ईश्वर लाट के निकट समकोण पर काटती है. अन्य सड़कें 55 फुट चौड़ी रखी गई . ये मुख्य सड़क को समकोणों पर काटती है. कई गलियाँ जो चौड़ाई में इनकी आधी या 27 फुट है, नगर के भीतरी भागों से आकर मुख्य सड़क में मिलती है. जयपुर की एक बड़ी विशेषता है की इसके मुख्य राजमार्गों पर मुख्य बाज़ार है, और एक भी राजमार्ग पर किसी भी घर का रास्ता नहीं खुलता है, सारे घरों कें प्रवेशद्वार अन्दर की गलियों में ही है.
जयसिंह ने इस शहर को बनाने में जिस शैली को अपनाया, वह भारतीय स्थापत्य-कला की मूल धरा से अलग नहीं थी लेकिन आमेर आमागढ़ और धाट के पत्थर और यहाँ बनायी जाने वाली सुर्खी और कली के मेल से तैयार होने वाले चूने ने इस शैली में कुछ ऐसी विशेषताएं पैदा कर दी हैं जो जयपुर की अपनी है और भारत में दूसरी जगह नहीं मिलती. यहाँ की इस निर्माण सामग्री ने बड़े हलके-फुल्के अंदाज में बड़ी से बड़ी इमारतें बनाई और स्थापत्य कला के अनुपातों का ऐसा निर्वाह किया की आज के विशेषज्ञ भी उन्हें देखकर दंग रह जातें है .

जयपुर के इमारती काम की इन खूबियों में नुकीली, कामदार किनारों वाली या सादा मेहराबें, टोडों (ब्रैकटों) पर झूलतें हुयें झरोंखे, पालथी मारकर बैठी हुयी चौकोर, अष्टकोण या आयताकार गुम्बदें, पतलें खम्भों पर उठी हुयी गुम्बजाकार छतरियाँ, गोखों से उठाये गए ताज, विशाल पोल या द्वार, सीढियों के बजाएं घुमावदार खुर्रे, चबूतरों के साथ ऊँची कुर्सी, खुले लम्बे-चौड़े चौक और उनके चौतरफा शुंडकार खम्बों पर वितानयुक्त मेहराबों वालें लम्बें दालान जो कहीं-कहीं जालियों से बंद हैं, गिने जा सकतें है.पत्थर के टुकड़ों की ठोस चुनाई और उस पर चूने का मोटा पलस्तर जयपुर की इमारतों के फौलादगी का बीमा होता है. नक्काशी के बजाये रंगों की सजावट या बेल-बुटें होतें है जो, "लोई" या बारीक चूने-कली के घोल से पाट कर इस तरह रगड़-घिस दिए जातें है की पीढ़ियों तक उनकी चमक बरकरार रहती है.

जयपुर के निर्माण में जयपुर के सभी शासकों का कुछ ना कुछ योगदान रहा है. लेकिन जयपुर संस्थापक सवाई जयसिंह के बाद सवाई प्रतापसिंह का योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय कहा जा सकता है . और महाराजा सवाई रामसिंह का तो जयपुर को गुलाबी नगरी के रूप में पहचान देने का योगदान उल्लेखनीय है ही.
गुलाबी नगर जैसा हम आज देखतें है अपने निर्माण के समय गुलाबी नहीं था. जयपुर को गुलाबी रंग सवाई रामसिंह ने दिया था.


किपलिंग ने जयपुर को "अचंभो का नगर" कहा था. वास्तव में अपनी स्थापना के समय से ही जयपुर ने भारतीय और विदेशी मेहमानों को आकर्षित और आश्चर्य चकित किया है .
तिफैन्थैलर ने, जो जयसिंह के समय जयपुर आया था, लिखा है की -----
पीछे की पहाड़ी से जयपुर नगरी का द्रश्य अत्यंत मनोहारी है. यह नगर नया होते हुए भी निश्चित रूप से भारत के प्राचीन नगरों में सबसे ज्यादा सुन्दर है. इसका प्रमुख मार्ग इतना चौड़ा है की उस पर छ : सात गाड़ियां बिना कठिनाई के एक साथ चल सकती है .

१८२० ई. में एक ब्रिटिश सेना अधिकारी ने कहा था -----
"मैं यह काहे बिना नहीं रह सकता हूँ की सुन्दरता और स्वछता की द्रष्टि से इंग्लैण्ड के मुश्किल से पांच-छ: मार्ग ही जयपुर की बड़ी चौपड़ से अच्छे होंगे ."

एक फ़्रांसिसी विद्वान जो १८३२ ई. में जयपुर आया था, कहता है की ----
"मुख्य मार्ग ही मुख्य बाजार है दोनों ओर महलो,मंदिरों और मकानों की कतारों के नीचे कारीगरों की दुकाने है. मुख्य मार्गों के बीच व्यापारियों की बड़ी-बड़ी दुकाने है. दिल्ली में ऐसी केवल एक सड़क है जिसका नाम चांदनी चौक है. पर जयपुर की सब सड़कें इसी तरह की है."

नगर कोट, बाजार, चौपड़
जयपुर शहर की चारों तरफ ऊँची और पक्की चार दिवारी बनी हुयी है. जिसमें प्रवेश के लिए दरवाजे चांदपोल, सूरजपोल, रामपोल(घाटगेट), शिवपोल (सांगानेरी गेट), किशनपोल (अजमेरी गेट ), ध्रुवपोल हैं.



जयपुर का परकोटा


चांदपोल गेट



अजमेरी गेट

पहले सारा शहर इसी चारदीवारी में घिरा हुआ था. दरवाजे खुलने और बंद होने का समय निश्चित था.
इन दरवाजों से अन्दर पहुंचे तो चांदपोल बाज़ार, किशनपोल बाजार, त्रिपोलिया बाजार, जहरी बाजार, रामगंज बाजार जैसे प्रमुख बाजार हैं जो मुख्य मार्गों पर स्थित है.
शहर की मुख्य सड़क जो की चांदपोल गेट से लेकर सूरजपोल तक है 111 फीट चौड़ी है और दूसरी सडकें 54' 26',13'-6" फीट चौड़ी हैं .
इसी प्रकार सडक के दोनों ओर दुकानें भी निश्चित चौड़ाई की हैं. जिनके आगे राहगीरों के लिए बरामदें बने हैं .
चांदपोल से सूरजपोल तक के मुख्य मार्ग पर जहाँ दूसरें प्रमुख रास्तें एक दूसरें को समकोण पर काटतें है, उन चोरहों पर तीन चौपडों का निर्माण हुआ है. अजमेरी गेट से ब्रहमपुरी जाने वाला रास्ता जो कि किशनपोल बाजार और गणगौरी बाजार कहलाता है मुख्यमार्ग को जहाँ काटता है वोह कोतवाली चौपड़ या छोटी चौपड़ कहलाती है . सांगानेरी गेट से जौहरी बाजार होते हुए हवामहल के सामने से जो रास्ता चाँदी की टकसाल की तरफ जाता है यह जहाँ मुख्यमार्ग को समकोण काटता है वह बड़ी चौपड़ कहलाती है. घाटगेट से चार दरवाजा जाने वाला रास्ता रामगंज चौपड़ का निर्माण करता है.

चांदपोल से सूरजपोल वाला मुख्यमार्ग



दुकानों के आगे राहगीरों की सुविधा के लिए बारामदें





छोटी चौपड़
छोटी चौपड़ का एक पुराना फोटो जिसमें ईश्वरलाट(सरगासूली) भी दिखाई दे रही है .


बड़ी चौपड़ जिसमें हवामहल भी दिखाई दे रहा है .
और यह इसी एंगल का पुराना फोटो





जयपुर के बाज़ार के नए पुराने चित्र जिनमें चौड़ी सड़कें साफ़ देखी जा सकती है .


नाहरगढ़ किले से लिया गया जयपुर का नजारा जिसमें बड़ी सड़कें एक सीध में दिखाई दे रहीं है . यह तीन सड़कें जहाँ राजमार्ग को काटती हैं वहाँ ही चौपड़ें बनी है.



जयपुर परकोटे में प्रमुख दर्शनीय स्थल (इनका विस्तृत वर्णन अगली पोस्टों में होगा)

चन्द्रमहल
यह जयपुर का राजप्रासाद चन्द्रमहल है जिसे सिटी पैलेस कहते है .





हवामहल

जैसे खादी का नाम लेते ही चरखा और गाँधी बाबा याद आते हैं, वैसे ही जयपुर की पहचान बन चुका हवामहल
(यह हवामहल का पिछला हिस्सा है, शायद दुनिया की इकलौती ईमारत होगी जो जो अपने पिछवाड़े के लिए प्रसिद्द है )
ईश्वरलाट (सरगासूली)



जंतर-मंतर

तालकटोरा / बादल महल
(अभी सूखा है पर विस्तृत परिचय में इसका महत्त्व बताऊंगा )


श्रीगोविंददेवजी


त्रिपोलिया
( सभी चित्र गूगल से साभार )
चलिए जी आज काफी थक गए अभी तो और भी बहुत कुछ है इस जयपुर की चारदिवारी में और परकोटे के बाहर नए जयपुर में भी जिनका अगली पोस्टों में वर्णन करूँगा. जयपुर के आसपास के दर्शनीय स्थलों पर भी ले चलूँगा.
आप इस जवाहरात की नगरी के एक हीरे रणजीत रजवाड़ा की आवाज में "म्हारे देस" आने का निमंत्रण स्वीकार कीजिये .

(यूट्यूब से साभार )

19 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही शानदार, जैसा योजनाबद्ध शहर है, उसी योजनाबद्ध तरिके से आपने जयपुर दर्शन करवा दिए। चित्र नयनाभिराम और इतिहास बोलते से है। आनंद आ गया।
    दो बार जयपुर आना हुआ लेकिन एक बार हवामहल के अतिरिक्त कोई दर्शनीय स्थल देख न पाया। आज आपने वह कमी पूर्ण कर दी।
    अगली कडी का बेसब्री से इन्तजार रहेगा।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही शानदार आपने जयपुर दर्शन करवा दिए

    जवाब देंहटाएं
  3. bahut achchha laga... kuchh purane photo aur dete to aur achchha lagta.. kitna achchha lagta hoga purane dino men..

    जवाब देंहटाएं
  4. .

    कुर्सी पर बैठे-बैठे इस व्यापक जयपुर-दर्शन से मेरे मन का संगीत झंकृत हो गया.

    .

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह जी आप ने तो घर बेठे ही हमे जय पुर घुमा दिया, बहुत सुंदर चित्र, ओर सुंदर विवरण धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. .

    अमित जी ये वही राजा जयसिंह हैं ना, जिनपर कभी बिहारी जी ने "नहीं पराग नहीं मधुर मधु ...." वाला उत्प्रेरक दोहा लिखा था.
    राजा जयसिंह पर लिखे अन्य प्रकरणों की भी जानकारी इस यात्रा को और भी मनोरंजक बना देगी ........ मुझे ऐसा लगता है.

    .

    जवाब देंहटाएं
  7. .

    इस पोस्ट पर आने के लिये माननीय बी एन शर्मा जी को आमंत्रण भेजिए. उनकी जानकारियों से इस यात्रा में हमारी मुंदती आँखें खुलेंगी.

    .

    जवाब देंहटाएं
  8. जानकर अच्छा लगा की आप सभी को यह प्रयास पसंद आया

    @ प्रतुलजी
    जयपुर ढूंढाढ राज्य की राजधानी था, पहले आमेर इसकी राजधानी था. इस राजवंश में तीन जयसिंह हुए हैं. पहला मिर्जा राजा जयसिंह जो की ढूंढाढ राज्य के छब्बीसवें शासक थे. दूसरें सवाई जयसिंह प्रथम जिन्होंने जयपुर बसाया.(इन्हें जयसिंह द्वितीय भी कहतें है ) यह इस राजवंश के उन्तीसवें और जयपुर के प्रथम शासक थे.
    ढूंढाढ राज्य के पैंतीसवें और जयपुर के सातवें राजा सवाई जयसिंह द्वितीय थे.
    यहाँ ध्यान देने की बात यह है की जयसिंह भले ही तीन हुए हो पर "सवाई" जयसिंह दो ही हुए है . सवाई जयसिंह द्वारा जयपुर की स्थापना होने के कारण इसे "राज सवाई जयपुर" भी कहा जाता था. सवाई उपाधि का वर्णन अगली किस्तों में

    अरे रे असली बात तो बतायी ही नहीं "नहीं पराग नहीं मधुर मधु ...." वाले जयसिंह - "मिर्जा राजा जयसिंह" थे, जो आमेर के शासक थे .

    जवाब देंहटाएं
  9. सही फ़ार्मूला निकाले हो मित्र। पहले न्यौत दे दो, फ़िर ऐसी बढि़या पोस्ट छाप दो कि कि कोई आ जाये तो उसे कह सको कि अब क्या करने आये हो जब जयपुर दर्शन तो ब्लॉग पर ही करवा दिये थे?
    बहुत चालू हो न, ठीक है, यहीं दर्शन करके काम चला लेते हैं:)

    जवाब देंहटाएं
  10. जयपुर के बारे में इससे अच्छा मैंने कभी नहीं पढ़ा , नए पुरातन चित्रों के कारण यह शोध क्षात्रों के लिए रुचिकर रहेगा ! कठिन परिश्रम के बाद लिखे इस लेख के लिए बधाई अमित !
    !

    जवाब देंहटाएं
  11. @ मोसमजी
    अजी साहब यह तो दर्शन की झलकी मात्र है, असली दर्शन का आनंद तो यहाँ आकर घुमने में ही आयेगा .................... एक बात और कहीं ना कहीं इस पोस्ट के कारण आप भी रहें है, जो बार बार जयपुर आने की धमकी देकर भी नहीं आतें और हम सारी तैयारी करके बैठे रहतें है...................आपको सभी को ललचा रहा हूँ यह दिखा/पढ़ा कर ....................अब तो पधारो म्हारे देश.

    @ सतीशजी
    मेहनत तो करनी पड़ी है, जयपुर पर लिखी चार-पांच किताबों से छांट-छांट कर लिखने में मेहनत तो लगेगी ही ....................फिर क्या लिखूं क्या छोड़ू की उहापोह भी रहती है ऐसे में .....................पर आगे अभी बहुत कुछ बाकी है मेरे मालिक :)

    जवाब देंहटाएं
  12. Amit ji....It's nice to know about Jaipur.

    Your hard work paid dividends. All the pictures are awesome. One day I'd like to visit Jaipur.

    Thank you for this meaningful post.

    जवाब देंहटाएं
  13. अरे वाह ! बढ़िया लेख है
    मैं जब भी जयपुर जाता हूँ वहां की परंपरागत स्टाइल में जमी बसी दुकानें [ जैसी पोस्ट के ऊपर से छठवें चित्र " दुकानों के आगे राहगीरों की सुविधा के लिए बारामदें" में दिख रही है .. ...] देख कर बड़ा अच्छा महसूस होता है..... एकदम अपनापन सा महसूस होता है

    जवाब देंहटाएं
  14. जयपुर के स्थापना दिवस के अवसर पर उस pink city पर इतना विस्तृत जानकारीपरक आलेख आपके गहन अध्ययन का प्रतीक है.शहर के महत्वपूर्ण स्थलों की फोटो के माध्यम से तो आपने पूरे जयपुर शहर के दर्शन करा दिये.बहुत बहुत धन्यवाद आपको.

    जवाब देंहटाएं
  15. बेहतरीन चित्रों के साथ जयपुर सम्बन्धी जानकारी के लिए आभार। मेरा जयपुर दर्शन का सपना पूरा हुआ।
    आभार।

    जवाब देंहटाएं
  16. @ अमित जी
    आप ने तो पूरा जयपुर दर्शन ही करा दिया
    मेरा सुझाव है की आप हिन्दू ब्लोगर असोसिएसन बहुत ही जल्द बनाए . इस की बहुत ही आवश्यकता है .
    आशा करता हू की आप गौर करेंगे . आप इन कुछ एक व्यक्तियों में है जो ये सफलतापूर्वक कर सकते है .

    जवाब देंहटाएं

जब आपके विचार जानने के लिए टिपण्णी बॉक्स रखा है, तो मैं कौन होता हूँ आपको रोकने और आपके लिखे को मिटाने वाला !!!!! ................ खूब जी भर कर पोस्टों से सहमती,असहमति टिपियायिये :)