शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

आप खुद देखिये और फैसला कीजिये क्या यही धर्म है ?? तो भाड़ में जाए ऐसा धर्म

टोंक, राजस्थान में ईद-उल-अजहा के मौके पर दी जाने वाली ऊंट की कुर्बानी



कामख्या मंदिर में बलिदान---------

55 टिप्‍पणियां:

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  2. दीपक डुडेजा जी अधूरी पोस्ट के कारण आपकी कमेन्ट असम्बद्ध हो गयी थी इसलिए माफ़ी चाहते हुए डिलीट कर रहा हूँ . आशा है आप मेरे भाव समझेंगे .

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  3. निरीह और सीधे साधे जीवों की निर्दयता से जान लेने वाले सिर्फ बर्बर कहे जा सकते हैं ! मैं आपकी भावनाओं का समर्थन करता हूँ

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  4. अमित जी,

    यह दृष्य जगुप्सा और घ्रणा ही पैदा करते है। निरपराध और निरिह जीवों का क्रूरता भरा वध और वो भी उन मानवो के हाथो जिन बर्बरो को प्रेम दे देते है।
    मुझे नहिं लगता यह दृष्य देखकर उन क्रूर लोगों के ह्रदय में करूणा जागेगी।(बुरा दृष्य देखने के अघ की स्वालोचना करता हूँ)

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  5. पाशविकता के इस घौर उग्र रूप को देखने का साहस भी हमारे पास नहीं है....

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  6. औंधी खोपडी एवं भावनाशून्य पाषाण ह्रदयों वाले नराधमों की पाशविकता का नग्न रूप....."असुरवाद" का जीता जागता उदाहरण..
    विकासवादी सिद्धान्त कहता है कि मनुष्य की उत्पति पशुओं से हुई है...लेकिन ये सब देखकर तो हमें लगता है कि या तो ये सिद्धान्त ही पूरी तरह से गलत है या फिर मनुष्य की कुछ प्रजातियाँ अवश्य ऎसी हैं, जिनकी उत्पति पशुओं से नहीं अपितु असुरों से हुई है...पक्का!

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  7. ..

    मैंने जीवन में पहली बार इस तरह के दुष्कर्म देखे. मेरा जी खराब हो गया है. शायद उलटी आने ....
    उलटी आते-आते संभाली है. ............. रात्रि को जो भोजन किया वह सब गले तक आ गया था. ............ वाशबेसिन से वापस आया हूँ.
    हे राम ......................
    मेरे मन में इस तरह के धर्म के लिये भरपूर घृणा भर दे.

    ..

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  8. हमने देखे दोनों वीडियो देखे, देखकर ही घृणा हो रही है, कैसे धर्म के नाम पर सरेआम निरीह प्राणियों की बली दी जा रही है, इन सब पर तो हत्या का मुकदमा चलाना चाहिये।

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  9. हे राम !
    इन लोगों को हृदय और मस्तिष्क दिए बिना संसार में क्यों भेज दिया ???
    धिक्कार है !
    अगर यह है धर्म तो भाड़ में जाए ऐसा धर्म !



    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  10. … और भाड़ में जाएं ऐसे घिनौने धर्मावलंबी !


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  11. मेरी हिम्मत नहीं हुई वीडियो देखने की... शत्रु के सीने को छलनी करने में जिनके हाथ नहीं कांपते हैं, वे भी इन निरीहों की हत्या यूं नहीं कर सकते... वाकई में भाड़ में जायें ऐसे धर्मावलम्बी..

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  12. यह कुर्बानी नहीं है... हत्या है.. धिक्कार है... ऊपर और नीचे दोनों पर ही... अब कहां गये पशु प्रेमी समाजसेवी टेलीविजन चैनल...

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  13. इस साहसिक प्रस्तुति के लिये आपको बधाई दूँगा,
    बहुत कम ही लोग हिन्दू और मुस्लिम दोनों को समान भाव से बेनकाब कर पाते हैं,
    इँसानियत का यह ज़ज़्बा बनाये रखें, आप बहुत दूर तक जायेंगे । सच में आपकी निष्पक्षता से अभिभूत हूँ ।

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  14. मानवता करती उद्भूत
    कैसे दानवता के पूत,
    जो पिशाचपन को अपनाकर
    बनते महानाश के दूत,
    जिनके पग से कुचला जाकर जग-जीवन करत चीत्कार।
    करुण पुकार! करुण पुकार!
    ----हरिवंशराय बच्चन

    भाड़ में जाए ऐसा धर्म ! भाड़ में जायें ऐसे धर्मावलम्बी..

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  15. दिल दहला देने वाला दृश्य हैं. ये प्रथाएं पुराने ज़माने तक तो ठीक थी , मगर आज इन्सान चाँद पर पहुँच गया हैं, फिर भी ऐसा क्यों सोचता हैं कि अल्लाह या देवी-देवता को खुश करने के लिए बलि देना अनिवार्य हैं. नोर्थ इंडिया में बलि कि परम्परा आज भी जीवित हैं मगर जानवरों कि नहीं.... नारियल तोडा जाता हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश में बलि कि जगह जानवर के कान में हल्का सा चीरा लगाया जाता हैं और उस जानवर को आजाद कर दिया जाता हैं.

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  16. देख लिये जी दोनों वीडियो। प्रेम, अमन, शांति जैसे सकारात्मक भावों का समुद्र और भी जोरों से ठाठें मार रहा है अब।

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  18. आपने यह चित्र लगाकर साहस का काम किया है और नराधमों की कलई खोली है -इन्टरनेट का इससे बड़ा उपयोग क्या हो सकता है ? मैं यह चित्र लगाने की हिम्मत नहीं कर पाया था,यह लोगों की भावनाओं को गहरे चोट पहुंचा सकता है मेरी भी भावनाएं आहत हुयी हैं -यहाँ बनारस में एक बलि के ऊँट ने कई लोगों को प्राणघातक चोट पहुंचाकर ही अपनी कुर्बानी दी ...शायद अल्लाह ही अब इन्हें सबक देगा ....
    मजहब के नाम पर ऐसी नृशंसता बंद होनी चाहिए !

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  19. tarkeshwar ji sahi kah rahe hai aap ki aaj insan chand par ja chuka hai magar uske dimag me bhusa bhar gaya hai aap log vigyyan ke jamane me bhi dimag ka istemal nahi kar rahe sirf bewkufi ki baat kar rahe hai

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  21. भाईसाहब,
    जय श्री राधे-राधे ,

    मै विडियो देख पाने में असमर्थ हूँ !!
    कृपया सहायता करें !!!!

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  22. Mr Thakur M Islam Vinay:- Pahle ye batawo ko tum ho kaun Thaku ya M Islam ya Vinay...

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  23. अपने मुर्दे को जलाने वाले लोग , ये दृश्य देख कर "हे राम हे राम कहें" तो कैसा लगता है , जैसे सौ चूहे खा कर बिल्ली चली हज को ,
    इंसान जिन्दा हो या मुर्दा उसे जलाना कितना बड़ा पाप है , शायद ही कोई बता पायेगा ,
    जान तो तब भी निकलती है जब हम किसी पेड़ को कटते होंगे , किसी पौधे को उखाड़ते हैं लेकिन वो बेजुबान है उनकी आवाज़ हम तक नहीं पहुँचती क्या ये विज्ञान की बात नहीं है , केवल जानवरों की कुर्बानी में विज्ञान की बातें याद आती है ,
    न जाने कितने वर्षों से पेड़ों को काट कर मुर्दे को आपने जलाया है , वातावरण को दूषित किया है , ग्लोबल वार्मिंग को बढाने में योगदान दिया है , किसी ने इतना हो हल्ला किया , जंगल के जंगल समाप्त कर दिए अपने मुर्दे को जलाने के लिए , हमने कुछ बोला
    पशुओं को जिंदा तड़प तड़प कर मरने दिया( अगर कोई बड़ी बिमारी हो जाये या पशु बुढा हो जाए ) क्योंकि आज अपने इलाज के पैसे नहीं 80 करोड़ हिन्दुस्तानी लोगों के पास , जानवरों का क्या इलाज हम करायेंगे ,
    ये आपका धर्म है , हम कौन होते है बोलने वाले , किन्तु अगर आप हमारे धर्म में या उसके किसी क्रिया क्रम के बारे में बोलो गे तो हम चुप नहीं बैठेगे

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  24. करोड़ों को दफन करने चांद पर जाना पड़ेगा...
    मृत व्यक्ति को जलाना पाप है, लेकिन जिन्दा को काट डालना धर्म...
    फिर बात खेत की चली, पहुंच गये कब्रिस्तान में...
    अक्ल बड़ी चीज है लेकिन कोई प्रयोग करे तब...
    मेरे प्रिय गायक स्व०मोहम्मद रफी साहब की कब्र भी सलामत नहीं रह सकी जमीन की कमी के चलते. पूरी धरती ही कब्रिस्तान में तबदील हो जायेगी, फिर रहा कहां जायेगा, खेती कहां होगी, चांद पर..

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  25. पूरी धरती ही कब्रिस्तान में तबदील हो जायेगी, फिर रहा कहां जायेगा, खेती कहां होगी, चांद पर..

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  26. पूरी धरती ही कब्रिस्तान में तबदील हो जायेगी, फिर रहा कहां जायेगा, खेती कहां होगी, चांद पर..

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  27. पूरी धरती ही कब्रिस्तान में तबदील हो जायेगी, फिर रहा कहां जायेगा, खेती कहां होगी, चांद पर..

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  28. पूरी धरती ही कब्रिस्तान में तबदील हो जायेगी, फिर रहा कहां जायेगा, खेती कहां होगी, चांद पर..

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  29. पूरी धरती ही कब्रिस्तान में तबदील हो जायेगी, फिर रहा कहां जायेगा, खेती कहां होगी, चांद पर..

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  30. .

    शायद इन चित्रों को देखकर लोगों कि आत्मा जागेगी ! ऐसा विश्वास है।

    .

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  31. विश्व की अधिकांश जनसँख्या अपने मुर्दे को दफ़न ही करती है और हज़ारों वर्षों से कर रही है किन्तु स्थान की कमी नही हुई ,
    हाँ ये बात अलग है की मुर्दे जलाने और उनके नदियों में विसर्जित करने से जंगल अवश्य कम हो गए हैं और नदियाँ भी प्रदूषित हुई हैं , और बहुत अधिक कुप्रभाव पड़ा है ,

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  32. गायक स्व०मोहम्मद रफी साहब की कब्र भी सलामत नहीं रह सकी जमीन की कमी के चलते. पूरी धरती ही कब्रिस्तान में तबदील हो जायेगी, फिर रहा कहां जायेगा, खेती कहां होगी, चांद पर..

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  33. गायक स्व०मोहम्मद रफी साहब की कब्र भी सलामत नहीं रह सकी जमीन की कमी के चलते. पूरी धरती ही कब्रिस्तान में तबदील हो जायेगी, फिर रहा कहां जायेगा, खेती कहां होगी, चांद पर..

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  34. गायक स्व०मोहम्मद रफी साहब की कब्र भी सलामत नहीं रह सकी जमीन की कमी के चलते. पूरी धरती ही कब्रिस्तान में तबदील हो जायेगी, फिर रहा कहां जायेगा, खेती कहां होगी, चांद पर..

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  35. मैं धर्म के मामलों में कमेन्ट देने से बचता हूँ, पर इस पोस्ट तथा इसके कमेन्ट को देखकर कुछ लिखे बिना रह नहीं सकता,

    ऊपर दिए गए वीडियो में एक मुस्लिम त्यौहार का है तथा एक हिन्दू रिवाज का अतः इस लेख को मजहबी बहस में तब्दील ना करें, रही बात कुछ कमेन्ट की जिसमे मुर्दे को जलाने को पागलपन कहा गया है तथा एक में मुर्दे को गाड़ने को बेबकूफी बताया गया है, यदि दोनों ही तरीके बंद कर दे तो क्या करें ? इंसानों के शरीर को जानवरों के खाने के लिए छोड़ दे ? जब तक आपके पास कोई और हल ना हो इस तरह के बेबकूफी के प्रश्न मत उठाया करो

    बात यहाँ सिर्फ बली को लेकर चल रही थी पर असामाजिक तत्त्व हिन्दू, मुस्लिम लड़ाई में कूद ही जाते हैं | मुझे लगता है कि देवी या अल्लाह इन असामाजिक तत्वों की बली की मांग करते होंगे तथा धर्म ग्रंथों में उनको ही जानवर कह कर संबोधित किया गया होगा, जिसका अर्थ असली जानवरों से लगा लिया गया| खैर इंसानों को चिंता करने की जरूरत नहीं है क्यूंकि दोनों ही धर्म ग्रंथो में नरक तथा दोजख जैसे बली के स्थान इन असामाजिक तत्वों के लिए बनाए गए हैं, अतः असामाजिक कमेन्ट लिख कर असामाजिकता को बढ़ावा देने वालों तैयार हो जाओ तुम्हारे ईद की तैयारियां कहीं पर जोरों-शोरो से चल रही हैं |

    इंसानों को वह ईद तथा बली मुबारक हो |

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  36. @ जनाब योगेन्द्र जी ! ये confused people हैं और समझते हैं कि दुनिया में ज्ञान सिर्फ इनके पास है और संसार में अगर कोई इंसान है तो बस केवल यही हैं . अमन शांति कि बात सिर्फ यही कर सकते हैं .
    बात अस्ल में यह है कि
    कुछ लोग हैं जो न तो अपने धर्म की जानकारी रखते हैं और न ही वे उसके पालन में ही दिलचस्पी लेते हैं लेकिन अपनी राजनीतिक कुंठाओं के चलते मुसलमानों के दीन ईमान और रिवाजों का मजाक उड़ाते रहते हैं ।
    जो मुसलमान रजनीश जी की तरह चुप रहे उसे उदारवादी कहा जाता है और अगर कोई ग़ैरतमंद मोमिन जवाब देता है तो कहते हैं कि यह कट्टर है दुर्भावना फैला रहा है । ये खुले आम कहते रहते हैं कि मांसाहार राक्षसी और तामसिक भोजन है ।
    1, क्या यह रवैया दुरुस्त है ?
    2, क्या हमारी सेना मांस नहीं खाती ?
    3, क्या हमारे वीर सैनिकों को राक्षस कहा जाना उचित है ?
    4, क्या सिक्ख गुरु बलि नहीं देते थे या मांसाहार नहीं करते थे ?
    5, ये थोड़े से शाकाहारी पूरी दुनिया को उनके भोजन के कारण राक्षस ठहराकर क्या लक्ष्य पाना चाहते हैं ?
    6- योगेन्द्र जी , अगर आपका तरीका भी अपना लें तो ये उसमें भी कीड़े ही निकालेंगे .
    ये लोग अपने महँ पूर्वजों कि रीत को भुला बैठे हैं ,

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  37. @ प्यारे भाई पंडित अमित शर्मा जी ! आप तो सब जानते हैं फिर भी सनातन आर्य परंपरा के विरूद्ध लिखते हैं ?
    आजकल मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र जी की गाथाएं बड़ी लोकप्रिय हैं, परन्तु उनकी गाथाओं के मूल आधार वाल्मीकि रामायण का साधारण जनता को कम ही ज्ञान है। वाल्मीकि रामायण में अनेकों स्थानों पर श्री रामचन्द्र जी के शिकार करने और मांस खाने का उल्लेख है। केवल एक उदाहरण यहां उद्धृत किया जा रहा है -
    तां तदा दर्शयित्वा तु मैथिली गिरिनिम्नगाम् ।
    निषसाद गिरिप्रस्थे सीतां मांसेन छन्दयन् ।।
    इदं मध्यमिदं स्वादु निष्टप्तमिद मग्निना ।
    एवमास्ते स धर्मात्मा सीतया सह राघवः ।।
    (वाल्मीकि रामायण, अयोध्या काण्ड, 96, 1 व 2)
    अर्थात इस प्रकार सीता जी को (नदी के) दर्शन कराकर उस समय श्री रामचन्द्र जी उनके पास बैठ गए और तपस्वी जनों के उपभोग में आने योग्य मांस से उनका इस प्रकार लालन करने लगे, ‘‘इधर देखो प्रिये, यह कितना मुलायम है, स्वादिष्ट है और इसको आग पर अच्छी तरह सेका गया है।‘‘
    इसके अतिरिक्त श्री रामचन्द्र जी के मृगादि के शिकार तथा मांस खाने के वृतान्त के लिए वाल्मीकि रामायण में देखें - अयोध्या काण्ड, 52-102; 56-22 से 28; और अरण्य काण्ड 47-23 व 24 आदि।
    पाराशर, पतंजलि और याजनवल्क्य के मांस भक्षण संबंधी उद्धरण तो वर्तमान अज्ञान की स्थिति में प्रस्तुत करना उचित ही नहीं है क्योंकि उससे शाकाहारियों और गौ-प्रेमियों की भावनाएं उत्तेजित होंगी। यद्यपि उन्हें धार्मिक भावनाएं नहीं कहा जा सकता, क्योंकि ये उद्धरण तो धार्मिक ग्रंथों के ही हैं।

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  38. हिन्दू परंपरा में मांसाहार
    वर्तमान में हिन्दू भाइयों की दृष्टि में कुरबानी करना धार्मिक रीति तो क्या, घोर पाप है, परंतु अतीत में बौद्धों और जैनियों के प्रभाव से पूर्व ऐसी किसी धारणा का अस्तित्व न केवल नहीं था बल्कि हिन्दू ग्रंथों में आज भी कुरबानी और मांस भक्षण का उल्लेख मौजूद है। मनु स्मृति जिसे समाज का एक वर्ग ब्राह्मणों द्वारा रचित विधान और व्यवस्था का नाम देता है, के पंचम अध्याय का अधिकतर भाग कुरबानी तथा मांस भक्षण पर ही आधारित है। उदाहरण के लिए -
    यज्ञार्थं ब्राह्मणैर्वध्याः प्रशस्ता मृगपक्षिणः ।
    भृत्यानां चैव वृत्यर्थमगस्त्यो ह्याचरत्पुरा ।। (मनु. 5,22)
    अर्थात यज्ञ के लिए तो अवश्य तथा रक्षणीय की रक्षा के लिए शास्त्र-विहित मृग और पक्षियों का वध करे। ऐसा अगस्त्य ऋषि ने पहले किया था।
    प्राणास्यान्नमिदं सर्वं प्रजापतिरकल्पयत् ।
    स्थावर। जंगमं चैव सर्व प्राणस्य भोजनम् ।। (मनु. 5, 28)
    अर्थात प्रजापति ने जीव का सब कुछ खाने योग्य कहा है। सब स्थावर (फल, सब्ज़ी आदि) तथा जंगम (पशु-पक्षी, जलचर आदि) जीव जीवों के खाद्य भक्ष्य हैं।
    नात्ता दुष्यत्यदन्नाद्यान्प्राणिनोऽहन्यहन्यपि ।
    धात्रैव सृष्टा ह्याद्याश्च प्राणिनात्तार एव च ।। (मनु. 5, 30)
    अर्थात प्रतिदिन भक्ष्य जीवों को खाने वाला भी भक्षक दोषी नहीं होता है, क्योंकि सृष्टा ने ही भक्ष्य तथा भक्षक, दोनों को बनाया है।
    नाद्यादविधिना मांस विधिज्ञोपनदि द्विजः । (मनु. 5, 33)
    अर्थात विधान को जानने वाला द्विज बिना आपत्तिकाल में पड़े विधिरहित मांस को न खाए।
    नियुक्तस्युक्त यथान्यायं यो मांसं नात्ति मानवः ।
    स प्रेत्य पशुतां याति संभवानेकविंशतिम् ।। (मनु. 5, 35)
    अर्थात शास्त्रानुसार नियुक्त जो मनुष्य मांस को नहीं खाता है, वह मर कर इक्कीस जन्म तक पशु होता है।
    यज्ञार्थं पशवः सृष्टा स्वयमेव स्वयंभुवा ।
    यज्ञस्य भूत्यै सर्वस्य यस्याद्यज्ञे वधोर्वधः ।। (मनु. 5, 39)
    अर्थात सृष्टा ने यज्ञ के लिए पशुओं को स्वयं बनाया है और यज्ञ संपूर्ण संसार की उन्नति के लिए है, इस कारण यज्ञ में पशु का वध वध नहीं है।
    उपरोक्त ‘लोकों से स्पष्ट है कि स्मृतिकार की दृष्टि में केवल विधिरहित वध का निषेध है। ईशदूतों की सिखलाई विधि के अनुसार ईश्वर का नाम लेकर कुरबानी करना उत्तम है और कुरबानी या यज्ञ का मांस न खाना पाप है।

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  39. आपकी पोस्ट के सन्देश और उद्देश्य से सहमत हूँ। यद्यपि मुझे मूक पशुओं पर हो रहे अत्याचारों के ऐसे विडिओ या हक़ीकत देखने की ज़रूरत नहीं है।

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  40. शर्मा जी! आपको ब्लाग पर माडरेशन की बाड लगा लेनी चाहिए अन्यथा अनवर जमाल जैसे खुजली वाले 'जलील' कुते यू ही मुँह मारने आते रहेंगें

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  41. शिवजी ओघड़ थे
    1- ब्रह्मा जी शिवजी के पास गये और बोले - ‘‘हे ओघड़‘‘ । - साधना प्रेस हरिवंश पुराण पृष्ठ 140 2- सूत जी ने कहा - शंकर जी ‘‘ओघड़‘‘ हैं ।- डायमंड प्रेस ब्रह्माण्ड पुराण पृष्ठ 39/साधना प्रेस स्कन्ध पुराण पृष्ठ 19 शिवजी का भेष 1- मुण्डों की माला धारण करते हैं । - पद्म पुराण , खण्ड 1 , श्लोक 179 , पृष्ठ 324 शिवजी का निवास 1- शिवजी श्मशान घाट में रहते हैं । - डायमंड प्रेस वाराह पुराण पृष्ठ 160
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    शिवजी का आहार 1- शिवजी कहते हैं कि - ‘‘मैं हज़ारों घड़े शराब

    , सैकड़ों प्रकार के मांस से भी - ‘‘लिंग-भगामृत‘‘ के बिना

    सन्तुष्ट नहीं होता‘‘ । -

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    वेंकेटेश्वर प्रेस कुलार्णव तन्त्र उल्लास पृष्ठ 472- शिव जी अभक्ष्य

    पदार्थों का भक्षण करते हैं । - ठाकुर प्रेस शिव पुराण तृतीय पार्वती

    खण्ड अध्याय 27 पृष्ठ 235

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  42. काली का आहार
    1- काली सैकडों-लक्ष अर्थात लाखों हाथियों को मुख में रखकर चबाने लगी । -ठाकुर प्रेस, शिव पुराण पंचम युद्ध खण्ड अध्याय 37 पृष्ठ 3712- अम्बिका मदिरा अर्थात शराब पीती थी । -संस्कृति संस्थान , वामन पुराण , खण्ड 12 , ‘लोक 37 , पृष्ठ 2503- काली की जीभ से कन्या पैदा हो गई । -देवी भागवत , खण्ड 2, ‘लोक 36, पृष्ठ 248‘शिवलिंग और पार्वतीभगपूजा ?‘ का एक अंश लेखक : सत्यान्वेषी नारायण मुनि , स्थान व पोस्ट - सिकटा जिला - पश्चिमी चम्पारण , बिहार प्रकाशक : अमर स्वामी प्रकाशन विभाग , 1058 विवेकानन्द नगर , गाजियाबाद - 201001 मूल्य : 5 रूपये मात्र

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  43. हिन्दू लोगो को पंगा लेने का बहाना चाहिये।

    इनको इंसान से ज्यादा प्यारे जानवर प्यारे है।

    चूंकि ये जनसंघी कट्ठर बाम्हन है ये भारत को हिन्दू राष्ट्र् बनाना चाहते हैं।

    गाधी जी को मरवा दिया अब ये हमे मारने के बहाने ढंूढ रहे है।

    इनके बाप दादा जानवरों की बली चढ़ा कर मांस खाते थे

    रावण इनका विरोध करता था तो षंडयत्र रच कर रावण को राम से

    मरवा दिया

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  44. ओह!

    जरुरी है इस तरह की चीजों को बेनकाब कर इन पर संभव रोक लगाना. मूक प्राणियों पर होते इन अत्याचारों के देख मन व्यथित हो जाता है.

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  45. अनवर जमाल जी ,
    मैंने पहले भी आपको मनु स्मृति का लिंक दिया था, फिर दे रहा हूँ, डाउनलोड करके पढ़ लो - और जो मनुस्मृति आप के पास विसर्जित ही कर दो - http://scribd.com/forallover

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  46. शर्मा जी ,निर्भीक अभिव्यक्ति के लिए बधाई
    मेरे ब्लॉग में भी कुछ बेनामी मूर्ख बिना बुलाये और बिना प्रसंग के उलटी सीधी बाते और गली गलौज लिख रहे थे . माडरेशन लगा कर उन को रोकना पड़ा .आप भी ये उपाय अपना ले .
    स्वयं भू घोषित , इस्लाम के बड़े भारी जानकर अनवर जमाल जी ये मनु स्म्रतियां अपनी फूफी के घर से लाये है .
    जमाल जी आप अपना ज्ञान बी.एन. शर्मा के ब्लॉग पर दिखाईये मैं भी तो देखू की आप में कितना ज्ञान है . यहाँ पर तो आप का झूठ पकड़ा गया है . जाईये वहा अजमा आईये .
    जितने बार भी गए है दुबारा से कुरान और हदीस में अपना सर फिर से दे मारा है .
    हलाल और बलात्कार(सूरए निशा आयत २४) कुरान में जायज है और उस को ये धर्म मानते है .
    कौन सा धर्म है ???????????????
    असुर या अमानवीय

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  47. ..

    मित्रो !
    मेरे मस्तिष्क में एक विचार कौंधा है :

    — क्या आटे को दोबारा चक्की में डालकर पीसना समझदारी कहा जाना चाहिए ? ..... निकलेगा क्या ....... आटा ही ना !
    — क्या तेल को पुनः कोल्हू में डालकर पेरना समझदारी कहा जाना चाहिए ? ......... निकलेगा क्या ......... तेल ही ना !
    — एक दुधारू पशु को उसका ही दूध पुनः पिला दिया जाये .. तो होगा क्या ? .... वह क्या मक्खन देने लगेगा? ......... देगा तो दूध ही ना !
    — क्या किसी के मांस को अपने मांसल शरीर में डालना [खाना] समझदारी कहा जाना चाहिए ? ......... क्या वह मांस दूसरा रूप अख्तियार कर लेगा? ........... बढ़ेगा/ रहेगा तो मांस ही ना !

    यदि
    — एक वस्तु एक प्रक्रिया से गुजर कर दूसरा रूप पाती है तो उसे विकास कहते हैं.
    — एक वस्तु एक प्रक्रिया से निकलकर अपने अवशिष्ट छोड़ती हुई दूसरा रूप ग्रहण करती है तो उसे उन्नति कहते हैं. इसे ही ऊर्जा की सार्थकता भी कहते हैं.
    अन्यथा
    — घृत से घी का निर्माण करना मूर्खता है.
    — दुग्ध से दूध बनाना बनाना मूर्खता है.
    — आटे से आटा बनाना मूर्खता है.
    — मांस से मांस बनाना मूर्खता है.
    ....... मूर्खता मतलब निरर्थक प्रयास करने वाला.
    ....... द्वितीयक पदार्थों की पुनः प्राप्ति के लिये वही क्रिया बार-बार दोहराना सरासर वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं.
    — यह एक पिछडापन कहलायेगा.
    — इसे शिक्षा की कमी भी कह सकते हैं.
    — गंवारूपन भी.

    ..

    अन्य दृष्टिकोणों से विचार बाद में .........

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  48. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  49. ..

    ..

    ..

    मेरे विचार समीर लाल जी के प्रति बिगड़ रहे थे लेकिन काफी समय बाद मैंने उनकी इस 'दो फाड़ कर देने वाले विषय पर' निर्भीक राय देखकर मन प्रसन्न हो गया.
    वे मेरे श्रद्धा आसन फिर से जा बैठे.
    चरण वंदन.

    ..

    ..

    ..

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  50. JAMAL ANWAR, KO UTTAR,
    संवत्सरं गव्येन प्रीतिः, भूयांसमतो माहिषेण,( saMvatsara me JO praniyonko PRITI DETA HAI VAH SHATAU HOTA HAI, VAH MANUSHY BHU (MATI) ME MIL JATA HAI JO jangli praniyo ka mans khate hai.
    संवत्सरं saMvatsara m. year of the vikrama era the first ina cycle of five or six years edit (माहिष mAhiSa m. of a people
    http://spokensanskrit.de/index.php?tinput=mAhiSa&script=&direction=SE&link=yes
    एतेन ग्राम्यारण्यानां पशूनां मांसं मेध्यंPCUS P व्याख्यातम्. (PRECIOUS & VALUABLE MEDHYA)
    खड्गोपस्तरणे खड्गमांसेनानन्त्यं कालम्. (jiski talwar ne anantkal se kisi ki hatya na ki ho tatha)
    तथा शतबलेर्मत्स्यस्य मांसेन वाध्रीणसस्य च.*(TATHA jo SHATBALIyoka raja hai , vah MANUSHYA jise koi bhi vyadhi na ho vah bhi mans khane se jaldi mar jata hai. र्मत्स्यस्य – mar )marna )
    -आ. धर्मसूत्र 2,7,16,25 व 2,7,17,3
    श्राद्ध ye shabd kaha se laya hai? में गोमांस (gavyen gavyen means give DENA) खिलाने से पितर ye kay ye shabd kaha se laya hai? एक वर्ष के लिए संतुष्ट हो जाते हैं। भैंस y mahisha means... of a people
    का मांस खिलाने से वे उस से भी ज़्यादा समय के लिए संतुष्ट होते हैं। यही नियम खरगोश ye shabd kaha se laya ? आदि जंगली पशुओं और बकरी ye ye shabd kaha se laya ?आदि ग्रामीण पशुओं के मांस के विषय में है। यदि गैंडे ye shabd kaha se laya hai?
    खड्ग khaDga
    m. sword
    के चर्म पर ब्राह्मणों को बैठा कर गैंडे का ही मांस खिलाया जाए तो पितर अनंत काल के लिए संतुष्ट हो जाते हैं। यही बात ‘शतबलि‘ नामक मछली ye shabd kaha se laya hai? matsya means KING .. SHATBALIOKA RAJA BHI MANS KHANE SE vadhiyukt ho jata hai tatha mati me mil jata hai..के मांस के विषय में है।

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  51. ANWAR JAMAL NA JANE AAPKO KYA HO JATA HAI AAP SANSKRIT KA ACCHA ABHYAS KARIYE SANSKRIT KE EK SHABD KE HAJAR ARTH NIKALTE HAI FIR AAP KE DIMAG ME GANDHE VICHAR HI Q AATE HAI..
    CHOR KE DADHI ME TINKA AAP NE JO BHI UPAR HINSA KE VISHAY ME VEDO ME SHLOK NIKALE USKA BHI HAM KHANDAN KARTE HI HAI ... VAISE USME HINSA KA LESHMTRA BHI NAHI HAI Q KI KAHI KAHI MANS KA AARTH MAHINA (TIME) HOTA HAI JAMAL FOR EXAMPLE SUN KAN KHOL KAR AB " DAST SE KHANA PAROSA FUFI NE, PESH AAB BEGAM NE KIYA" BAHOT HI SIMPLE BAT HAI JAMAL JARA DIL SE SOCH AUR JO UPAR DIYE HUYE SHLOKO SE GANDE ARTH NIKAL RAHA HAI VAH BHUL JA......Q KI MAI BAR BAR YAHI KAH RAHA HU KI SANSKRIT ME EK SHABD KE HAJARO ARTH HO SAKTE HAI AADMI KO APANE VIVEK BUDDHI SE USKE ACHHE ARTH SE USKA UPYOG KARNA HOTA HAI......

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  52. AAPKO RISHABH KAND TO MILA HOGA NA VAISE JANKARI KE LIYE BATATA HU KI SANSKRIT ME RISHABH KA ARTH SHRESHTH HOTA HAI.......AAPKE UPAR DIYE GAYE SHLOKO KA ARTH BHI JALDI HI AAPKO SAMJAUNGA ...
    TAB TAK AAP APNE GANDHE DIMAG SE AUR KUCHA SHLOK HO YA FIE KOI AISI KITAB HO TO BATA DE HAM USKA BHI KHANDAN KARENGE.......

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  53. अनवर जमाल जी ,
    मैंने पहले भी आपको मनु स्मृति का लिंक दिया था, फिर दे रहा हूँ, डाउनलोड करके पढ़ लो - और जो मनुस्मृति आप के पास विसर्जित ही कर दो - http://scribd.com/forallover

    CHAK DE FATTE PAPE JI AAPNE TO KAMAL KAR DIYA HAM TO USIKE BANAYE HUYE SHLOKO KA BHA KHANDAN KAR RAHE THE ....DEKHA MR. JAMAL ANWAR BHAI HAM HINDU BURAIYOME BHI ACHAI DEKHTE HAI TUNE BHJE HUYE SHLOKO ME TUJHE HINSA DIKATI PAR HAME TO USME BHI AHISNA DIKHTI HAI...

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  54. यहा पे किसी भी धर्म के लोगो को कुछ नहीं कहना है , सिर्फ इतना कहना है जो लोग चाहे वो कोई भी धर्म से हो इन क़ुरबानी ओ का पक्ष लेते है एक बार सिर्फ एक बार अपने आप को इन जानवरों की जगह पे रख के देख ले, सोच ले फिर कहे की क्या ये होना चाहिए ?

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  55. all the time i used to read smaller content which also clear their motive, and that is also happening with this post which I am reading here.


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जब आपके विचार जानने के लिए टिपण्णी बॉक्स रखा है, तो मैं कौन होता हूँ आपको रोकने और आपके लिखे को मिटाने वाला !!!!! ................ खूब जी भर कर पोस्टों से सहमती,असहमति टिपियायिये :)